Anju singh

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कार्तिक मास



प्रतियोगिता कहानी

विषय - कार्तिक मास



 बात उन दिनों की है जब कार्तिक मास का महिना आने वाला था। 
एक गाँव में एक बूढी औरत अपने बहू और बेटे साथ रहती थी। दोनो ही पूजा पाठ में बड़ा ही विश्वास रखती थी।एक दिन बूढ़ी औरत अपनी बहु को पास बुला कर बोलती हैं, कि इस कार्तिक में मेरा दिल गंगा स्सान को कर रहा है तो मै इस बार कार्तिक नहाने हरिद्वार जाऊगी मेरे जाने की तैयारी कर दो। वो बूढ़ी औरत लालची और अपने को भगवान का सबसे बड़ा भक्त मानती थी। बूढ़ी औरत की बात सुन उसकी बहु बोलती हैं, माँ जी मै भी आपके साथ कार्तिक नहाने जाऊगी, 
मेरा भी काफी समय से यही इच्छा है। तो वो बोलती हैं, बहु अगर हम दोनों चले गए तो घर कौन देखेगा और यहाँ बेटा भी अकेला रह जाएगा। 
वो बूढ़ी औरत अपनी बहु को किसी तरह कार्तिक स्नान के जाने से रोक देती है और खुद हरिद्वार की गाड़ी में बैठ कर चली जाती हैं। 
 कुछ दिन सब अच्छे से चल रहा था कि एक दिन गंगा स्नान के समय उसे अपने घर पर रखे गहनों का ध्यान आता है और सोचती हैं अब तक तो सब कुछ बहु ने सारे गहने ढूँढ कर चोरी करके छुपा लिए होगे। 
उधर उस कि बहु तृष्णा कार्तिक स्नान पर न जाने के कारण सोचती हैं मै घर पर ही कर लेती हूँ।और वो पुरी क्षद्धा के साथ घर पर ही एक बड़े से ताश के बर्तन में विधि पूरक स्नान करती। 
उसकी साँस जब भी स्नान करती तो बस गहने और बहू के बारे मे सोच कर स्नान करती उसके मन में लालच के साथ एक खुशी भी थी की वो अपनी बहु को साथ नही लाई ये सोच कर जब भी वो डूबकी लगाती तो उस के पास से एक चीज़ गंगा जी मे बह जाती और दूसरी तरफ उसकी बहू डूबकी लगाती तो उसे उसकी साँस की गंगा जी मे गिरी चीज़ उसके हाथ में आ जाती थी। 
ये देख वो हैरान होती और अपनी साँस की सोने की चैन, अंगूठी और सभी सामान उठा कर उनके सामान साथ रख देती।। 
 ऐसे ही कार्तिक माह बीत गया और और उसकी साँस हरिद्वार से घर लौट आई, तो देखा उसकी साँस कुछ दुखी है, तो तृष्णा बोली क्या हुआ माँ जी, फिर उसकी साँस सब कुछ उसे बता देती हैं। 
तब उसकी बहु बोलती हैं आप दुखी मत हो माँ जी मेरे साथ चलो और वो अपनी साँस का सारा सामान दे देती हैं। 
यह देख बुढी औरत चौक जाती हैं, फिर उसकी बहु बताती हैं कि मैनै घर पर ही इस पात्र में कार्तिक स्नान किया था और जब दोनों उस को देखती हैं तो तांबे का पात्र भी सोने का हो जाता है। 
 तब उसकी सासँ बोलती हैं बेटी असली कार्तिक स्नान तो तुने किया है सच्चे मन और तन से जिस से खुश होकर कार्तिक भगवान ने आशीर्वाद के रूप मे तेरे को ये सब दिया है। 
और मेरे मन में लालच आ गया था तो उस कारण से में वहाँ होते हुए भी कार्तिक स्नान नही कर पाई। 
फिर दोनो हाथ जोड कर कार्तिक भगवान को प्रणाम करती हुई बुढी औरत क्षमा मागती हैं। 
इस प्रकार से फिर दोनों साँस बहु एक साथ कार्तिक स्नान के लिए बोलती हैं, 
और दोनो एक साथ कार्तिक स्नान करके उनकी कृपा और आशीर्वाद लेती है। 
 स्वरचित -अंजू सिहं दिल्ली




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1 Comments

Gunjan Kamal

17-Nov-2023 06:13 PM

Nice

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